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Thursday, September 10, 2020

कॉलेज का पहला दिन

कॉलेज का पहला दिन


"कुछ लोग नमक की तरह होते हैं जो पानी में झट से घुल जाते हैं। पर….मैं शक्कर की तरह हूँ मुझे थोडा टाईम लगता हैं।” सच कहूँ तो अपने इसी व्यक्तित्व के कारण मुझे हमेशा से नई जगह और नए लोगो के बीच जल्द तालमेल बिठा पाने में काफी मशक्क़त करनी पड़ती हैं। 

एक कॉलेज किसी भी छात्र के जीवन में एक नई शुरुआत होता है। स्कूल के बहुत अनुशसित जीवन के बाद ही कॉलेज देखने का नसीब होता है। यह हमे स्वतंत्रता के साथ नई जिम्मेदारी का भी एहसास करवाता है। कॉलेज आने के कुछ दिनों बाद से ही हमें इस बात का एहसास होता है कि वाकई अब हम बड़े हो गए हैं और अपनी मनमानी कर सकते हैं। हम खुद को स्वतंत्र पंछी कि तरह महसूस करने लगते हैं।

हमारा जीवन हमेशा आगे बढ़ते जाता है और हमारे साथ कई सुनहरी यादें जुड़ती चली जाती हैं। कुछ घटनायें बस यादों के झरोखे में ही सँजोये रह जाते हैं। और कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिन्हे अकेले में भी याद कर कर के लोटपोट होते रहते हैं। 

कॉलेज का पहला दिन ही मेरे जीवन में अलग तरह की आनंद और उम्मीदें ले कर आईं थी। मेरे लिए वह एक अविस्मरणीय दिन था। उस घटना ने मेरी जिंदगी बना दी और मुझे एक सच्चे जीवन साथी कि तलाश पूरी की। प्यार एक गहरा और खुशनुमा एहसास है। जब किसी से प्यार होने लगता है तो रिश्ते की शुरआत में हम अक्सर सिर्फ सकारात्मक चीज़ें ही देखते हैं, और सातवें आसमान में महसूस करते हैं। 

बात आठ साल पहले की है जब मैं एक साल की कड़ी मेहनत और काउंसिलिंग के तमाम rounds की भाग-दौड़ के बाद आखिरकार मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे देहरादून के शिवालिक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग  में दाखिला मिला। मैं तो खुश था ही लेकिन मेरा परिवार मुझसे कहीं ज्यादा खुश थे। उनके खुशी का कारण यह था कि हमलोग देहरादून ही रहते थे और वह कॉलेज भी देहरादून में ही था।

कॉलेज के पहले दिन मुझे मेरे पापा खुद ही कॉलेज तक छोडने आए थे। उन्हें विदा कर पहली बार यह अहसास हो रहा था कि अब मैं उनके सुरक्षा कवच से बाहर इस दुनिया में कदम रख चुका हूं और यहां से आगे की राह खुद ही तय करनी है। कॉलेज का पहला दिन था, मैं बहुत उत्सुक था, लेकिन सच पूछे तो मन में एक डर था, कहीं रैगिंग हो गई तो। सहमे हुए कदमों के साथ मैंने कॉलेज कैम्पस में एंटर किया। मैं कुछ कदम चली ही थी कि सामने से लड़के और लड़कियों का एक ग्रुप आता दिखा।

मैने झट से रास्ता बदल लिया और तेजी से दूसरी तरफ भाग खड़ा हुआ। कुछ दिनों तक मेरी इसी तरह आँखमिचोली चलती रही लेकिन मेरी यह चालाकी भी ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई, आखिर वो seniors जो थे। मैने देखा कि एक दिन वो seniors सामने से आ रहे थे फिर मैं जैसे ही पलटकर दूसरे रास्ते कि तरफ जाने को हुआ तो देखा कि उस रास्ते से उन्हीं seniors का एक दल उस रास्ते से मेरी तरफ आ रहा था।

तभी मैने देखा कि कुछ seniors कुछ new students की रैगिंग कर रहे थे। तभी मेरी नजर उन्हीं students के बिच एक बेहद खूबसूरत लड़की पारुल भार्गव पर पड़ी जो बेहद ही खूबसूरत थी। मैने उसकी bold नेचर कि वजह से ही उसे पहले दिन उसका नाम जान लिया था। दरअसल कॉलेज के पहले दिन ही फ्रन्ट सीट पर बैठने के लिए मुझसे भीड़ गई थी। वैसे भी वह कॉलेज की सबसे आकर्षक लड़की, जो भी देखे बस नजर हटाये बिना देखते रहता था।

सभी नये students उन seniors के आगे सर झूकाये खड़े थे। उतने मे ही सिनीयर का ग्रुप लिडर जो रैगिंग करवा रहा था।

मेरे पास आज बचाव के सारे रास्ते बंद थे इसलिए मैंने मन में सोचा,

“बेटा तैयार हो जाओ आज तो तुम्हारी रैगिंग पक्की है। अब कॉलेज आए हो तो यह इन सब से गुजरना ही होगा एक ना एक दिन। तो बाबू अब वो वक़्त आ गया है।"

मेरे मन में रैगिंग का डर इतना गहरा था कि मेरे कदम अपने आप वहीं रुक गए। लेकिन सीनियर्स का वह ग्रुप मेरी ओर बढ़ा चला आ रहा था। मैं अगला कदम भरने की हिम्मत ही जुटा रहा था कि वे सब मेरे सामने आ कर खड़े हो गए।

उनमे से एक बोला, “बच्चे बहुत बच लिए चल आजा! आजा आज मजे चखाता हूँ तुमको!”

यह कहते हुए वो मुझे उन seniors के पास ले गया जहां पारुल भार्गव पहले से मौजूद थी। उनमें से एक ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा,

“न्यू एडमिशन?”

मैंने बिना कुछ कहे बस हां में सिर हिला दिया। मेरा डर मेरे चेहरे पर साफ दिख रहा था, माथे से पसीना फिसल कर गाल तक आ चुका था। मैंने पसीना पोछने के लिए हाथ उठाया कि इतने में दूसरा सवाल आया,

“कौन सी स्ट्रीम?”

मैंने फिर सहमी हुई आवाज में जवाब दिया, “मकैनिकल इंजीनियरिंग!”

मैं बचपन से ही पढ़ाई में तेज था और स्कूल में हमेशा क्लास में फर्स्ट आने के अलावा मॉनिटर भी रह चुका था। लेकिन यहां इन सीनियर्स की टोली के सामने मेरी सिट्टी पिट्टी गुम थी।

 
मेरे मन में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे, “अब क्या होगा, क्या ये लोग मुझे गाना गाने को कहेंगे, या फिर मुझे किसी टीचर को तंग करने का टास्क दिया जाएगा, कहीं ये लोग मेरे साथ कोई बदतमीजी तो नहीं करेगें। 



मैं ये सब सोच ही रहा था कि सीनियर्स की टोली में से एक senior ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैं और डर गया। इसके बाद जो होने वाला था, यकीनन वह मेरी सोच से परे था। तभी एक सीनियर ने मेरे तरफ देखते हुए कहा, “क्या नाम है तेरा?”

मैं डरते हुए बोला, “ज... जी मेरा नाम सानिध्य बड़थ्वाल है और मैं यहीं देहरादून का ही रहने वाला हूँ।”

“चुप एक दम चुप! तुझे हमने पूछा क्या कि तू किस जगह से है? तुझसे जितना पूछा जाए बदले में जवाब उतना ही मिलना चाहिए।”

उसकी इस धमकी से मैं कांप गया। मुझसे आज तक इस तरह से किसी ने बात नहीं कि थी। उसने यह बात चीखकर कही थी इस वजह से मुझे बड़ा अजीब लगा था। यहाँ इतने सारे students थे सभी ने अपनी नजरे झुकाई हुई थी जैसे वो सभी कोई बड़े गुनहगार हों। तभी अगली आवाज आई,

“तू वहीं है ना जो हमे देख के रोज अपने रास्ते बदल लेता था?”

मैं बोला, “Sorry sir, but I will never repeat it again.”

मेरा जवाब सुनते ही इस बार वह और बौखला गया और बोला, “वाह English क्या बात है? हमारे सामने अंग्रेजी झाड़ेगा। यह बात अच्छे से अपने भेजे में घुसा ले कि तुझे हमेशा हिन्दी में ही जवाब देना है वो भाई तब जब हम seniors जवाब देने को कहें।”

मैने इस बार कुछ नहीं कहा। उस senior वहीं पास में एक गुलाब का फूल तोड़ा और मेरे मेरे हाथ में देते हुए बोला,

“उस लड़की को देख रहे हो ना? जाओ उस लड़की को प्रपोज करो और हाँ एक बात का ध्यान रखना इस गुलाब को तुम्हें उसी को देना है और खाली हाथ ही वापिस आना है।”

मैने अपनी नजर घुमा के देखा तो उसने पारुल कि तरफ इशारा करते हुए कहा था। यह तो वही लड़की थी जिसेके साथ कॉलेज के पहले दिन झड़प हो गई थी। मैने अपने सिर पर हाथ मारा और अपनी किस्मत ऊपर वाले के हाथ में छोड़ दिया। मैं धीमे कदमों से उसकी तरफ बढ़ा और उसके सामने जा कर खड़ा हो गया और उसकी तरफ वह लाल गुलाब का फूल बढ़ाते हुए बोला,

“तेरी खुशबू को ज़रा महसूस करूँगा; 
तेरी बात को मैं ज़रा गौर से सुनुँगा; 
ले कर मेरा यह गुलाब अगर तू मेरी हसरत को पूरा करे; 
तो देखना आज से ही मैं ज़िन्दगी भर तेरी पूजा करूँगा।
I love You Parul, Please accept it.”

मेरा इतना कहना था कि तभी पारुल ने उस गुलाब के फूल को अपने हाथों में पकड़ा और खींच के मेरे मुंह पर फेंक दिया। मुझे उसकी यह हरकत देखकर बहुत बुरा लगा। मैं वैसे भी किसी लड़कियों में समय बर्बाद करने कि जगह अपना समय किताबों में देना बेहतर समझता था। वो अपने आप को किसी महारानी जैसी समझने लगी थी लेकिन वह यह भूल गई थी कि यह महज एक रैगिंग का हिस्सा था जिसे मुझे किसी तरह से पूरा करना था।

वो तो ऐसे react कर रही थी जैसे मैने सच में उसे प्रपोज कर दिया हो। अब बात प्रतिस्ठा पर आ गई थी। उस दिन तो लड़की होने कि वजह से मैने अपनी seat उसे दे दी थी लेकिन आज अच्छा खासा मौका मिला था उस दिन का हिसाब बराबर करने का। इसलिए मैने एक आखिरी शायरी कही,

“अजब सी बेकरारी है; दिन भी भारी था, रात भी भारी है;
 अगर मेरा दिल तोड़ना है तो शौंक से तोड़िए; 
 लेकिन यह गुलाब का फूल ना हमारी है ना तुम्हारी है।”

यह कहते हुए मैने उसके बालों में वह गुलाब का फूल घूंसा दिया। मेरी इस हरकत से वह आग बबूला हो गई और उसने घुमाकर थप्पड़ मार दिया।

“चटाकssss”

इस आवाज से वहाँ का वातावरण गूंज उठा। वो तो सही हुआ कि मैं ऐन वक़्त पर नीचे झुक गया था और वह चांटा सीधे उस senior के गाल पर लग गया था। सभी ठहाके लगा कर हँस रहे थे और मैं भी उन सभी कि हंसी में साथ दे रहा था। उस senior के अलावा बाकी senior भी हँस रहे थे। वह गुस्से में वहाँ से चला गया और हम सभी भी अपनी class के लिए आगे बढ़ चले थे।

यह पहला मौका था जब मैने अपनी छाप उस college में छोड़ी थी। उस दिन के बाद मेरी और रूल में अच्छी दोस्ती हो गई। लेकिन आज भी उस घटना को 8 साल से अधिक का समय हो गया है लेकिन आज भी उस घटना के बारे जिक्र करता हूँ तो दोनों ही फूले नहीं समाते। 

सच यह मेरे जीवन की सबसे अनमोल घटना थी जिसकी वजह से मैं और पारुल करीब आए थे। आज हम दोनों पति पत्नी हैं और वह हमारे 2 साल के बेटे चिंटू के साथ बहुत खुश है। प्यार का असली मतलब ही जुड़ाव होता है की आप सामने वाले से एक अलग तरह से जुड़ गए हो जहाँ से आपको कोई भी अलग न कर पाए| आज चिन्टू हम दोनों की प्यार की निशानी था। लेकिन आज भी जब मैं पारुल को अपने सामने देखता हूँ तो लगता है यह पल यहीं ठहर जाए और उसे अपने सामने बैठाकर उस घटना का जिक्र करूँ जब उसके चांटे से खुद को बड़ी चालाकी से बचाया था। 


"समाप्त"

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इश्क़ इबादत

 

इश्क़ इबादत



 

प्यार एक अनछुआ एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, वो एहसास जो हमारे सीने में दिल होने के बात की पुष्टि करता है। वो एहसास जो हमारे सीने में दिल होने के बात की पुष्टि करता है, वो एहसास जो इस बात की भी पुष्टि करता है की मैं

भी इंसान हूँ। प्यार एक दुआ की तरह है जो कबूल हो जाये तो वरदान और जो न कबूल हो तो ज़िन्दगी भर पिया जाने वाला ज़हर।

 मेरा नाम प्रफुल्ल प्रसाद है और मैं वापकोस लिमिटेड लखनऊ में पिछले चार सालों से कार्यरत हूँ। आज मैं बहुत खुश था और मेरी खुशी कि वजह यह थी कि ऑफिस से तीन लोगो को अच्छे काम की वजह से आगरा का 2 रात और 1 दिन का टूर मिला था। जिसमें प्रफुल्ल प्रसाद (मेरा नाम), अर्चना और कौशल किशोर का नाम था। हमें इसी वीकेंड पर जाना था। हम तीनों बहुत खुश थे। मैं पिछले दो सालों से अर्चना के साथ रिलेशन में था लेकिन काम की व्यस्तता के कारण कभी बाहर ऐसे रोमांटिक जगह घुमाने नहीं ले गया था। हम दोनों एक दूसरे को काफी वक़्त से इस तरह का समय देना चाहते थे और अब तो मौका भी हाथ लग चुका था इसलिए लगे हाथ इस मौके को भुनाना भी चाहते थे।

जाने की सभी तैयारियां हो चुकी थी। अर्चना और कौशल किशोर के साथ मैं लखनऊ से डायरेक्ट आगरा जाने वाली फ्लाइट में बैठ गए थे। शाम 4 बजे तक हम आगरा पहुँच गए थे। हम वहाँ से फिर अपने होटल कि तरफ रवाना हो गए।

अब हमलोग होटल रॉयल ताज के रिसेप्शन के पास थे। कौशल ने तीन कमरे पहले ही ऑनलाइन बुक कर लिए थे। हमलोगों ने अपनी आई डी जमा करने के साथ ही चेक इन किया। रिसेप्शन वाले ने हमे रूम नम्बर 304, 305 और 309 की चाभी थमाई। ऊपर आने पर पता चला कि रूम नंबर 304 और 305 तो अगल-बगल ही थे लेकिन बस 309 उसी पंक्ति में अंतिम में था। यात्रा से हम सभी टूट चुके थे तो सब अपने अपने सामान लेकर अपने अपने कमरे में घूंस गए। थोड़ी देर में मेरे दरवाजे पर दस्तक ने मेरा ध्यान तोड़ा। मैं टॉवेल में था और नहाने जा रहा था।

"हू इज दिस? प्लीज कम इन?"

बिना किसी के आवाज के दरवाजा खुला और मैं यह देखकर अवाक रह गया कि दरवाजे को खोलकर अर्चना अंदर मेरे सामने खड़ी थी।

"हा हा तो जनाब यहां रासलीला कर रहे हैं, यदि रासलीला खत्म हो गयी हो तो क्या मुजरा देखने को मिल सकता है क्या?"

यह कहते ही वो जोर जोर से हँसने लगी और मैं भी उसके उस हंसी में शामिल हो गया। मैंने उसको थोड़ी देर इन्तजार करने को कहा और बस यूं गया और यूं आया कहकर नहाने को चला गया।

वो वहीं बेड के किनारे बैठकर मोबाइल से स्टेटस उपडेट करने में लग गयी। थोड़ी देर में जैसे ही नहा धो कर बाहर आया तो मैं यह देखकर स्तब्ध रह जाता हूँ कि अर्चना उस कमरे में अकेले नहीं थी, कौशल भी उसके बाजू में ही बैठा हुआ था औऱ उसके एक हाथ मे एक-दो कागज के टुकड़े और दूसरे हाथ मे एक पेन था।

उन दोनो ने मुझे देखते ही राहत की सांस ली और एक साथ बोले- "लो आ गए जनाब, बडी देर कर दी नहाने में।"

"अरे यार बहुत दिनों बाद कोई जर्नी की है और इस जर्नी ने तो थकाकर रख दिया था। अब जा कर कुछ हल्का हल्का सा फील हो रहा है।" मैंने शेखी बघारते हुए कहा।

यह सुनते ही अर्चना ने कहा- "तुमने नहाने में इतना वक़्त लगा दिया औऱ यहां मैंने और कौशल ने कल की ट्रिप की सारी प्लानिंग कर दी।"

"वाऊ डेट्स ग्रेट! यू गाइज आर रियली अमेजिंग।"

मैंने उनको मोटीवेट करते हुए कहा औऱ उसके हाथ से वो पेज ले कर उनके बीच बैठ गया। फिर कौशल ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "देख प्रफुल्ल सबसे पहले कल सुबह 10 बजे ताज महल देखने जाएंगे फिर वहां से लगभग 1 बजे लाल किला देखने जाएंगे जो मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर ही है फिर उसके बाद किसी अच्छे से रेस्टूरेंट....।"

अर्चना उसकी बात को बीच से ही काटती अपना तर्क रखती हुई बोली, "नहीं नहीं पहले लाल किला देखने चलेंगे उसके बाद किसी अच्छे से रेस्टूरेंट में खाना खाएंगे उसके बाद ताज महल देखने जाएंगे।"

"पहले ताज महल ही देखेंगे यार! इतनी दूर दूर से लोग ताज देखने के लिए यहां आते हैं और मैडम को पहले लाल किला फिर पेट मे ठूंसने की पड़ी है।" कौशल तिलमिलाते हुए बोला जैसे कि उससे उसकी दबी हुई इच्छा को किसी ने मान मर्दन कर दिया हो।

"यू आर रियली स्टूपिड कौशल ! मेरे ऐसा करने के पीछे कारण है, वो सुन तो ले पहले। मैं चाहती हूं कि हम ताज महल 5 बजे के बाद जाएं ताकि हमलोग ताज महल को सूर्यास्त से पहले लालिमा में डूबे हुए देख सकें और थोड़ी देर बाद चांदनी रंग में डूबे हुए भी देख सकें। क्या पता ज़िन्दगी में फिर कभी ऐसा मौका मिल सके या नहीं।"

मैं अर्चना के इस तर्क को सुनकर सच मे उसके इस गहरी और खूबसूरत विचार का कायल हो चुका हो गया।

"चल बे! कल अमावस्या की रात है, कल चांदनी रात तो दूर की बात ताज महल दिखने वाला ही नहीं है।"

कौशल  के ऐसा कहते ही मैं भी उसके साथ जोर जोर से हंस पड़ा। पहले तो अर्चना  ने गुस्से से कौशल की तरफ देखा और थोड़ी देर में वो भी अपने पर काबू न रख सकी और इस हंसी में हमारे साथ शामिल हो गयी।

"अरे चलो डिनर कर लें यार बड़ी जोरो की भूख लगी है।"

अर्चना ने ये प्रस्ताव रखा जिसे हम नकार नहीं सके औऱ हम तीनो कमरे में ताला बंद करके बाहर की तरफ रुख कर दिया। जैसे ही बाहर निकले सड़क के किनारे स्ट्रीट फूड्स ने मन को मोह लिया। इससे पहले की मैं कुछ कहता अर्चना ने कहा- "हे गाइज आई थिंक वी शुड ट्राय स्ट्रीट फूड्स बिफोर डिनर। व्हाट्स योर ओपिनियन?"

"वाह तुमने तो मेरे मन की बात ही कह डाली।" कौशल  ने उसकी बातों को वजन देते हुए कहा।

"नहीं बिल्कुल नहीं मुझे खाने के वक़्त यह सब पसंद नहीं, फिर डिनर पर इसका फर्क पड़ेगा।" मैंने अपने चहरे के भाव को गिराते हुए कहा था।

"अरे इसे नॉनवेज पसंद नही इसलिए यह नौटंकी कर रहा है। तुझे नहीं खाना है तो मत खाना। कम से कम हमें तो खाने दे। नहीं खाना तो मत खा लेकिन तू हमारे साथ खड़ा तो रह सकता है ना?"

अर्चना ने एक सांस में सारी बात बोल दी, जिसके सुनने के बाद मैंने कहा, "ठीक है सालों तुमलोग का पेट है ठूँस लो, मुझे क्या?"

थोड़ी दूर चलते ही अगली चौक पर ही कार्नर में बहुत भीड़ थी और वहीं दूर से ही विभिन्न जायके की खुश्बू आ रही थी जिसने भूख को बढ़ाने में इजाफा ही किया था। हम अगले ही पल वहां खड़े थे।

"यार मुझे तो मोमोज खाने हैं वो भी नॉन वेज वाले। कौशल तू बता क्या खाएगा? अर्चना ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।

"ऐसा कर मेरे लिए स्प्रिंग रोल और एक अफगानी मोमोज कर दे। अरे हां प्रफुल्ल! तूझे कुछ चाहिए तो अभी भी बोल दे मैं बाद में शेयर करने वाला नहीं हूं।" कौशल यह कहते ही हंस पड़ा।

"तुमलोगो को जितना ठूंसना है ठूंस लो मुझे यह सब चीजें पसन्द नहीं। बस एक बात का ध्यान रखना अगले आधे घंटे में हमे डिनर करना है।"

भूख तो मुझे भी बहुत जोर से लगी थी लेकिन मैंने यहां प्रतिष्ठा में प्राण दांव पर लगा चुका था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था कि मैं उनलोगों को खाते हुए न देखूं लेकिन इन व्यंजनों की खुश्बू से पीछा छुड़ाना मेरे लिए इतना आसान भी नहीं था। कभी मन होता कि मैं अपने लिए भी कुछ आर्डर कर दूं लेकिन मैं चाह कर भी ना जाने अपने कदम पीछे क्यों कर ले रहा था। करीब 20 मिनट बाद पैसा चुकता करने के बाद हम लोग टहलते टहलते एक अच्छे से ढाबे में बैठे और पेट भर खाना खाने के बाद वहां से होटल पहुँचे। सभी अब तक चुके थे और खाना खाने के बाद आंखे भी भारी हो चली थी। सभी अपने अपने कमरे में जा कर सो गए।

यह जुलाई महीने की गहराती शाम थी। पूरे दिन अपनी रौशनी और गर्माहट से धरती को नवाज़ता सूरज अब डूबने के मनसूबा बांध चुका था और धीरे धीरे क्षितिज की ओर लालिमा फैलाकर दिन को सिमटने के प्रयास में लग गयी थी। चिड़ियों की चिं चिं की आवाज से साफ ज़ाहिर हो रहा था कि यह अब अपने घौंसले की तरफ़ रवाना हो रही है।

अचनाक अर्चना की नजर ताज महल पर पड़ी। वो बिल्कुल ही चाँद की चांदनी से नहाया हुआ प्रतीत हो रहा था। ताज महल को अभी थोड़ी देर पहले भी देखा था तब भी आकर्षक ही लग रहा था परन्तु अब मनमोहक लग रहा था। मानो अपनी और आकर्षित कर रहा हो और मन उसको छूने को लालायित हो रहा था। वाकई अब एहसास हो रहा था कि सच मे ताज महल दुनिया के सात अजूबों में क्यों है, उसका जवाब प्रत्यक्ष देखकर ही मिल सकता था। उसकी नायाब कारीगरी चांद की दूधिया रौशनी में निखर कर उसकी शोभा बढ़ा रहा था।



अर्चना बिना कुछ कहे। उठ खड़ी हुई थी। वो एकाएक अपने दोनो हाथों को ऊपर उठाकर मन्द मन्द मुस्काती हुई धीरे धीरे गोल घूमने लगी। उसका चेहरा चांदनी में गिला गिला चमक रहा था। आज तो उस चांद को भी जलन हो रही होगी। वो इस अंदाज में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी मानो आज चाँद अपनी चांदनी से छटा बिखर कर आज ही अपना सब कुछ अर्चना पर न्योछावर कर देना चाहता हो। मैं यह सारे मनमोहक दृश्य अपने डी एस एल आर कैमरे में कैद कर रहा था। अचनाक मैंने कैमरा साथ ही खड़े कौशल को दिया और मैं अनायास अर्चना की तरफ खींचा चला गया। उसके करीब पहुंचकर मैंने उसके हाथों को थामा और कहा, "बस रूको मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं। पूछोगी नहीं मैं कहाँ ले जा रहा हूँ?"

"आज तुम जहां ले चलो मैं तैयार हूं। चाहे तो तुम इस सितारों के पार ले चलो या... बस तुम्हारे संग चलना यह काफी है प्रफुल्ल!"

यह कहते हुए वो मुस्कुराई और काफी देर तक मुस्कुराती ही रही। अर्चना आज पहली बार दिल खोलकर इतनी देर तक मुस्कुराई थी। शरद की चाँद सी बिल्कुल उजली हंसी। इस वक़्त उसके चेहरे पर पूरा चाँद था। प्यार के पल जादू के होते हैं, उन्हें किसी फ्रेम में कैद नहीं किया जा सकता। बस जिया जाता है जी भर।

"अब तो तुम खुश हो ना अर्चना ?" मैंने उत्सुकता वाले भाव में में लिए पूछा।

"खुश...बहुत खुश प्रफुल्ल! यह मेरे ज़िन्दगी का एक नायाब दिन है। मैं इसे कभी भूलना नहीं चाहती। इसे निरन्तर महसूस करती रहना चाहती हूँ।"

वह इतना कहते ही मुझसे ले लिपट पड़ी। मेरे धमनियों में ठहरा हुआ लहू, पसलियों में पथराया दिल एकाएक चौगनी गति से दौड़ने लगा। हमदोनो की सांसे बहुत तेज तेज चल रहीं थी। मैं उसकी यौवन की मादकता की भीनी भीनी खुश्बू को महसूस कर रहा था। मैं भी इस पल को दिल से महसूस करना चाहता था। हम काफी देर इसी अवस्था मे वहां बूत बनकर एक दूसरे से लिपटे रहे।

"नहीं...नहीं प्रफुल्ल! यह सही नही है। मैं जज्बातों में बह गई।" मुझे अचानक से जोर से धक्का देते हुए अर्चना ने कहा था।

मैंने अर्चना की तरफ बढ़ते हुए उसके नरम हाथों को अपने हथेलियों से पकड़ते हुए कहा।, "अर्चना! अपने दिल के जज्बातों पर दिमाग को मत हावी होने दो। दिमाग तो हमेशा इंसान को जीवन पर्यन्त उलझाए रखता है। हमेशा दिल की सुनो वो कभी गलत नही होता।"

यह सुनते ही वो बोली,

"तुम शोर शराबा हो शहर की किसी बस्ती का,

मैं तो सन्नाटा हूँ किसी समंदर की कश्ती का

एक दिन फिर मंजिल जुदा होनी ही है तुम्हारी और मेरी

कोई मसला ही नहीं बनता तुम्हारे प्यार में इस हस्ती का?"

उसने अपने इस सुंदर पंक्ति के साथ अपने भाव उजगार कर दिए थे जिसे सुनते ही मैं बोला, "लेकिन अर्चना मैं..!"

इस से पहले की मैं कुछ कहता वो मेरी बात को बीच से ही काटती हुई बोली, "लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमे दोस्ती की मर्यादा लांघनी चाहिए। मुझे तुम्हारी दोस्ती की ज़रूरत ताउम्र रहेगी और मैं तुम जैसे दोस्त को कभी खोना नहीं चाहूंगी।"

ऐसा बोलने के बाद उसने मेरे माथे पर हल्का सा चुंबन किया। उसकी अचानक इस हरकत ने मेरे शरीर मे झुरझुरी उत्पन्न कर दी। मैं उसकी बातों को सुनकर बिल्कुल स्तब्ध रह गया। मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मुझे अब क्या प्रतिक्रिया करनी चाहिए। उजली चांदनी में अर्चना के चेहरे का रंग अचानक उड़ गया था। वह अब दूसरी ओर देख रही थी। उन आंखों में क्या था? भय थी या माथे पर चिंता की लकीरें, मुझ में यह जानने का साहस नहीं था। मैं उसकी बातें सुनने के नाद काफी देर तक मौन रहा। उसकी बातों से मुझे उसके भविष्य की चिंता औऱ समाज का खौफ दिखा था।

चाँद पश्चिम की ओर अब कुछ झुक चला था। वह अगले पल मेरी तरफ मुड़ी और न जाने जेहन में एकाएक किस ख्याल के आने से रुक पड़ी। बिना कुछ बोले वो वहीं खड़ी मुझे नम आंखों से देखती रही। इस समय उसके सुने माथे पर चाँद चमक रहा था। उसके नीचे बिछी आंखों की गहरी उदासी ठीक किसी पछाड़ खाते समुद्र की तरह। उसकी आंखें अब शायद बहुत कुछ बयाँ कर रहे थे जिन्हें समझना मेरे लिए मुश्किल नहीं था। 

अचानक बड़ी तेज से गर्जना हुई और आसमान में बिजली कौंधी। इस बिजली की तेज गर्जना के साथ ही वो मुझसे लिपट गयी। वो बेखौफ काफी देर मुझसे ही लिपटी रही। उसने कॉलेज में एक बार बताया था कि उसे बिजली से बहुत ज्यादा डर लगता है। इस बिजली की चमक के बाद धीमी धीमी बारिश ने मौसम को और भी रूमानी बना दिया। दूर खड़े कौशल इन सभी पलों को कैमरे में कैद कर रहा था। हम लगभग पूरी तरह से भीग चुके थे, लेकिन उस वक़्त उसे ना तो खुद के भीगने की परवाह थी न ही मुझसे अलग होने की। इस से पहले की सिचूवेशन आउट ऑफ कंट्रोल हो जाए और हम अपने भावनाओ पर काबू ना रख पाए ,मैंने थोड़ी देर बाद खुद को उससे अलग किया और मेरा ध्यान उसके चेहरे की तरफ गया। उसकी आंखें सुर्ख लाल थी, जिसे देखने से पता लग रहा था कि इसके मन में किसी बात का डर या कोई पछतावा था जिसे वो बताने में अपने आप को असहज महसूस कर रही थी और उसे दिल के कहीं किसी कोने में दफन कर के अनायास ही काफी देर से आंसू बहा रही थी। वह बात अलग थी कि इस बारिश में उसके आंसू धूल जा रहे थे। उसकी आँखों को देखकर उसके जज्बातों का हाल खुद ब खुद बयाँ हो रहे थे। कहीं न कहीं उसके दिल मे कहीं टिश थी जिसकी वजह से उसने अपने कदम पीछे खिंचे थे।

अपने आपको संभालते हुए वो एकदम से सामान्य स्थिति में आती हुए बोली, "प्रफुल्ल! मुझे लगता है कि हमें यहां से अब चलना चाहिए। हम ऑलमोस्ट बारिश में भीग चुके हैं। हमें कल सुबह लखनऊ के लिए निकलना भी है।"

उसके अचनाक फिर से सामान्य होने की घटना मेरी समझ मे नही आया। उसका इस तरह वापिस स्थिति में आना वाकई काबिले तारीफ थी। इतना आसान नहीं होता किसी भी इंसान के लिए की पल में ही मूड को एकदम से बदल दें।

"अरे मैं तो कब से चलने को कह रहा था, लेकिन तुमलोग हो कि कबूतर के जोड़े की तरह एक दूसरे में खोए हुए थे।" कौशल  ने बिल्कुल सही वक्त पर आकर व्यंग्य मारा। उसके बाद हम तीनों बाहर आ गए।

"अरे सुन कौशल! तू अर्चना के साथ जा कर लाकर से सामान ले मैं बस थोड़ी देर में आता हूँ।"

मैंने यह कहते हुए कौहल के तरफ इशारा किया कि वो उसे कुछ देर उलझाए रखे मैं बस थोड़ी देर में ही मिल जाऊंगा उसको।

"ह्म्म्म ठीक है तू हमे एग्जिट गेट नंबर 2 के बाहर मिल जाना, हमलोग तुझे वहीं मिलेंगे।"  यह कहकर कौशल अर्चना  के साथ लॉकर के तरफ बढ़ गया।

हम तीनों होटल रॉयल ताज पहुँच चुके थे। बारिश अपने पूरे शबाब पर था। मानो ना रुकने की हठ लगा बैठा हो। हम थोड़ी देर में ही अपने अपने कमरे में पहुंच गए थे। कपड़े बदलने के बाद हम तीनों ने निश्चय किया कि आज रात का डिनर यहीं होटल में ही करेंगे। घड़ी रात्रि के 9:30 बजे का इशारा कर रही थी। हमलोग लगभग सवा दस बजे तक खाना खाकर कमरा नंबर 304 में ही थे। कौशल काफी थक चुका था इसलिए वो सोने अपने कमरे में चला गया। अर्चना मुझे अपने मोबाइल से लालकिला और ताजमहल के फोटो को दिखा रही थी। देखते देखते अचनाक उसे पता नहीं क्या हुआ। उसने मेरी हाथों को पकड़ते हुए बोली, "प्रफुल्ल! यह ट्रिप मैं ज़िन्दगी में कभी नहीं भूल सकती। वाकई यहां के बिताए हुए वक़्त मेरे जेहन को लगातार ताजा करती रहेगी। कल से वही बोरिंग लाइफ फिर से शुरू हो जाएगी इसलिए मैं इस रोमांचक सफर का और भी लुत्फ लेना चाहती हूं। मेरी एक आखिरी ख्वाईश है जो काफी वक्त से दिल मे दफन था लेकिन मैं उसे आज पूरा करना चाहती हूं। लेकिन मैं तुमसे उस बात को कहने में झिझक रहीं हूँ, की पता नहीं तुम मेरे बारे में क्या सोचोगे?"

"अरे झिझक कैसी भला? तुम्हें जो दिल करता है वो करो। ज़िन्दगी जीने का नाम है अर्चना। बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है मैं वो भी पूरी करूँगा।"

मैंने उसे एकदम जोश से कहा क्योंकि मुझे भी उसके मन दबे सतत बेचैनी को जानना था जिसके कारण उसे उस बात को कहने में झिझकना पड़ रहा था।

"पहले तुम यह प्रॉमिस करो कि यह बात किसी को बताओगे नहीं और इसे बिल्कुल ही टॉप सीक्रेट रखोगे? यदि ऐसा है तभी मैं तुम्हें बोलूंगी और हाँ प्लीज् मुझे तुम इस एक बात की वजह से जज मत करना।"

वो बेधड़क कहती चली जा रही थी और मेरी धड़कन की रफ्तार उसे साथ साथ बढ़ती ही चली जा रही थी। मैंने खुद पर काबू करते हुए कहा, "बिलिव मी अर्चना , मैं कभी किसी को कुछ नहीं बताने वाला। अब बस तुम कह डालो जो भी कहना है।"

"हम्म वो तो मुझे तुम पर भरोसा तो है ही वरना यूं ही इतनी दूर तुम्हारे साथ नहीं चली आती। मैं जो बताने वाली हूँ वो मेरी एक गुप्त इच्छा है जो अपने लाइफ में बस एक बार...एक बार पूरा करना चाहती हूं।" यह कहते कहते अर्चना जाने क्या सोचते हुए रुक गयी।

"अरे बोलो भी यार! वरना तुम्हारे बताने बताने में कहीं सुबह ना हो जाए।"

मैं इतना कहते ही जोर से हंस पड़ा। उसने मेरी तरफ गुस्से से अपनी दोनो भौहों को उठाते हुए नाक को चढ़ाते हुए गुस्से से कहा, "ईट्स नॉट अ जोक डियर। मुझे आज बियर पीनी है एंड आय वांट टू टेस्ट इट टुडे।"

"व्...व्हाट। आर यू सीरियस अर्चना? तुम्हें अचनाक आज यह क्या सूझी?" मैंने अपने मुँह को आश्चर्य से फैलाते हुए बोला।

"यस टुडे आय वांट लिटल बिट फन। क्या पता कल हो ना हो और कल हुआ भी अगर तो क्या पता हम हो ना हों।"

यह कहते ही वो अपने दोनों हाथों को ऊपर की तरफ उठा कर जोर जोर से हंस पड़ी और मैं भी उसकी हंसी में अब उसका साथ दे रहा था। उसने बताया कि उसने आज से पहले कभी बियर नहीं पी है और उसके मन मे स्वतः ही ख्याल आया गया कि यह मस्ती एक बार करना तो बनता है। उसने काफी सच्चाई और बेबाकी से आने में कई बात कही थी। मैं उसकी ओर देखता रहा कि शायद वो इस बारे में और कुछ कहेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। बस इतना ही बोल कर खामोश हो गयी।

"तो इसमे कौंन सी बड़ी बात है? ऐसा करना गलत है क्या?" उसने इस बात को इतराकर कहा और खिलखिलाकर हंस पड़ी।

मैंने फिर उसकी बात की पुष्टि करनी चाही, अर्चना ! आर यू श्योर ना?"

"लेट मी थिंक, यस ऑफकोर्स यार! अब किस तरह से कहूं।"

उसने यह कहने के बाद उत्सुकता से मेरी तरफ प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी। मैं थोड़ा हैरान ज़रूर था लेकिन कुछ हद तक उसके पागलपन करने की उसकी ज़बर्दस्त इच्छा का मजा ले रहा था।

"अगर तुम्हें लगता है कि इस तरह फन करना गलत है तो फिर रहने दे क्या?"

उसने यह बात बड़े भोलेपन से पूछा लेकिन उसकी आंखें मुझसे आग्रह कर रही थी कि मैं उसकी बातों से सहमत हो जाऊं औऱ इसकी आज हर एक बात को मानूं। मैं उसकी इस प्रस्ताव को नकार नहीं सका और एक भीनी मुस्कान के साथ उससे 15 मिनट का वक़्त मांगा और उस कमरे से बाहर चला आया। अगले ही कुछ क्षणों में ही मैं कमरा नम्बर 304 में उसके सामने खड़ा था। मैंने पैकेट्स खोलकर उसमे से किंगफ़िशर की 4 बियर की बोत्तल निकाली। बियर की बोत्तल को देखकर अर्चना की आंखों में विशेष चमक थी। उसने लपक के एक बोतल को हाथों में थाम लिया और बोतल को घुमाते हुए कुछ ध्यान से पढ़ने लगी।

"देखा मुझे था बियर में अल्कोहल की मात्रा बहुत कम होती है, इसमे केवल 8.56 ही है जबकि शराब पर प्रायः 48 के आसपास होती है। देट मिन्स ईटस नॉट हार्मफुल फ़ॉर हेल्थ।"



"वाह मैडम! काफी रिसर्च कर रखी है आपने। क्या आप यह भूल गयी कि मंदिर पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। मेरे ऐसा कहते ही वो मेरे साथ ही हँसने लगी।

"अरे मैं तो इसके साथ कुछ चकना वक्ना लाना तो भूल ही गया। ओह्ह...याद आया मेरे बैग में काजू का एक पैकेट पड़ा होगा। मैं अभी उसे निकालता हूँ।"

वह बैग मेरे इसी कमरे में मौजूद था। मैंने अर्चना  को इशारा किया क्योंकि वो बैग ठीक उसके पीछे ही दीवार के सहारे नीचे रख हुआ था। बियर उसकी हाथों में, मैं आज पहली बार देख रहा था। इसने बोतल के ढक्कन को खोलते ही आने हाथ को बढ़ाते हुए चियर्स कहा औऱ मेरे बोतल से धीमे से टकरा दिया।

"अरे धीरे यार... मैं भी आज पहली बार ही पी रहा हूँ। ऐसा ना हो कि इसके लबों तक जाने से पहले ही तुम इसे मुझसे हमेशा की लिए जुदा कर दो।"

"ओह्ह..सॉरी! जोश जोश में मैं अपना होश खो बैठी। आज पार्टी चलेगी जब तक चारो बोतल खत्म ना हो जाए।" अर्चना  ने मादक मुस्कान लिए कहा।

"इतना भी न पी लेना कि सुबह उठ भी न पाएँ मैडम। पता है न सुबह 6:30 की ही ट्रेन है।" मैंने उसे चेतावनी भरे स्वर में कहा।

"ह्म्म्म सब पता है महाराज। देखना सुबह मैं तुमसे पहले उठी हुई मिलूंगी।"

अर्चना  ने ऐसे रोष से कहा जैसे कि वह बिल्कुल वैसा ही करने वाली हो।

"वो तो अब सुबह ही पता लगेगा, की हम लेटे ही रह गए या...." अर्चना ने मेरी तरफ कटाक्ष करते हुए कहा।

"अरे छोड़ो यह सब बात। फिलहाल अपना ध्यान बियर पर कंसन्ट्रेट करो।"

यह कहते हुए मैंने उसके हाथों से काजू को पैकेट को छीना और उसमें से काजू को निकाल कर खाने लगा। मेरी नजर अर्चना की ओर गयी। उसने बियर की बोतल को अपने लबों से लगा रखा था। इस अंदाज में वो और भी नशीली नजर आ रही थी। उसको देखकर एहसास हो रहा था कि आज तो बियर को ही नशा चढ़ने वाला था।

जैसे जैसे एक एक घूंट उसके गले से नीचे उतर रहा था वैसे वैसे मुझे उसे इस तरह देखते हुए बड़ा ही सुकून लग रहा था। रात नशे के खुमार में हमे बहुत मजा आ रहा था। सारी बनावटी दुनिया की बातों से हम अलग जहां में थे। नशे का खुमार ऐसा चढ़ा की मुझे अर्चना और भी हसीन नजर आ रही थी। मैंने उसे उसके कोमल होठों पर एक जोरदार चुंबन कर लिया। मेरे इस हरकतों को उसने मना नहीं किया और धीरे धीरे उसकी धीमी धीमी सांसे खुसफुसाहट में बदली और वहीं सांसे तेज और तेज होती चली गयी। हम इस मोहोब्बत की जंग में बहुत दूर तक चले गए। हम दोनो ने पूरी रात एक दूसरे पर माहोब्बत न्योछावर करते हुए एक दूसरे में समाते ही चले गए।

सुबह जब नींद खुली तो मैंने देखा कि अर्चना के चहेरे पर अलग किस्म की मादकता का एहसास था। वो बहुत खुश दिख रही थी। उसने मुझे बताया कि हमारी आज सुबह की ट्रैन थी जो देर से उठने के कारण छूट गयी लेकिन चिंता की कोई बात नहीं कल की फ्लाइट्स की टिकट्स बुक कर दी है। मैंने उसे गले लगाते हुए कहा, "अर्चना आज तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो। तुम्हें आज शाम को मैं बहुत बड़ा सरप्राइज दूंगा।"

यह कहते ही हम दुबारा एक दूसरे में खो गए, लेकिन इस बार पूरे होश में थे। शाम को हमलोग ताजमहल दुबारा गए और मैं उसके सामने उसका हाथ पकड़कर घुटनों के बल बैठ गया और उसके हाथों को थामते हुए रिंग पहना के बोला, "डियर अर्चना विल यू मेरी मी?"

मेरे ऐसा बोलते ही उसके आंखों में आंसू की धारा फुट पड़ी और वो बोली, "यस माई स्वीटहार्ट आई विल।"

यह कहते ही उसने मुझे उठाते ही अपने नर्म होठों से एक जोरदार लंबी चुंबन अंकित कर दिया। हम लोग अगले ही दिन लखनऊ वापिस आ गए और कुछ दिनों बाद ही शादी भी कर ली। वो आगरा का दौरा और वो ताजमहल की यादें मेरी ज़िंदगी का सबसे यादगार पल बन गए थे। इस घटना के बाद ही मेरी समझ मे आया कि लोग ताजमहल को ही प्रेम का प्रतीक क्यों मानते है? ताजमहल वाकई मोहोब्बत की जीती जागती निशानी है जिसके सामने न जाने कितने अनगिनत प्यार का कारवां अपने मंजिल तक पहुँच पाई है और मैं खुशनसीब था कि मैं भी उनमें से एक था।



 

**समाप्त**